कृष्णा सोबती ! krishna sobti
जन्म- सन् 1925, गुजरात ( पश्चिमी पंजाब- वर्तमान मे पाकिस्तान)
प्रमुख रचनाएँ - ज़िंदगीनामा , दिलोदानिश, ऐ लड़की, बादलों के घेरे, समय सरगम ,डखर से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, सूरजमुखी अँधेरे के, हम हशमत, शब्दों के आलोक मे।
साहित्यिक - परिचय :- हिन्दी कथा साहित्य में कृष्णाज सोबती की विशिष्ट पहचान बनी है। वे यह मानती है कि कम लिखना ही विशिष्ट लिखना है । यहि कारण है कि उनके संयमित लेखन और साफ-सुथरी रचनात्मकता ने उनका एक नित नया पाठक वर्ग बनाया है । उनके कई उपन्यासो , लंबी कहानियों और संस्मरणों ने हिंदी के साहित्यिक संसार में अपनी दिघृजीवि उपस्थिति भी सुनिश्चित की है ; जैसे - मित्रो, शाहनी , हशमत आदि ।
भारत पाकिस्तान पर जिन लेखको ने हिंदी में कालजयी रचनाएँ लिखी थी , उनमें से कृष्णा सोबती का नाम पहली कतखर में रखा जाएगा । बल्कि यह.कहना भी उचित होगा कि यशपाल के झूठा-सच ,राही मासूम रज़ा के आधा गाँव और भीष्म साहिनी के तसम के साथ-साथ कृष्णा सोबती का ज़िदगीनामा इस प्रसंग में एक विशिष्ट उपलब्धि रही है ।
संस्मरण के क्षेत्र में हम हशमत शीर्षक से उनकी कृति का अपना विशिष्ट स्थान है , जिसमे अपने ही एक दूसरे व्यक्तत्व के रूप उन्होंने हशमत नामक चरित्र का सृजन कर के एक अद्भभुत प्रयोग का उदाहरण प्रस्तुत किया है। कृष्णा जी के भाषिक प्रयोग में भी विविधता मिलती है । उन्होंने हिंदी की कथा -भाषा को एक विलक्षण ताज़गी प्रदान की है । कृष्णा जी के भाषिक प्रयोग में भी विविधता मिलतीं है । उन्होंने हिंदी की कथा-भाषा को एक विलक्षण ताज़गी प्रदान की है। संस्कृतनिष्ठ तत्समता , उर्दू का बाँकपन और पंजाबी की जिंदादिली , ये सब उनकी रचनाओ में मौजूद है कृष्णा सोबती।
प्रमुख रचनाएँ - ज़िंदगीनामा , दिलोदानिश, ऐ लड़की, बादलों के घेरे, समय सरगम ,डखर से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, सूरजमुखी अँधेरे के, हम हशमत, शब्दों के आलोक मे।
साहित्यिक - परिचय :- हिन्दी कथा साहित्य में कृष्णाज सोबती की विशिष्ट पहचान बनी है। वे यह मानती है कि कम लिखना ही विशिष्ट लिखना है । यहि कारण है कि उनके संयमित लेखन और साफ-सुथरी रचनात्मकता ने उनका एक नित नया पाठक वर्ग बनाया है । उनके कई उपन्यासो , लंबी कहानियों और संस्मरणों ने हिंदी के साहित्यिक संसार में अपनी दिघृजीवि उपस्थिति भी सुनिश्चित की है ; जैसे - मित्रो, शाहनी , हशमत आदि ।
भारत पाकिस्तान पर जिन लेखको ने हिंदी में कालजयी रचनाएँ लिखी थी , उनमें से कृष्णा सोबती का नाम पहली कतखर में रखा जाएगा । बल्कि यह.कहना भी उचित होगा कि यशपाल के झूठा-सच ,राही मासूम रज़ा के आधा गाँव और भीष्म साहिनी के तसम के साथ-साथ कृष्णा सोबती का ज़िदगीनामा इस प्रसंग में एक विशिष्ट उपलब्धि रही है ।
संस्मरण के क्षेत्र में हम हशमत शीर्षक से उनकी कृति का अपना विशिष्ट स्थान है , जिसमे अपने ही एक दूसरे व्यक्तत्व के रूप उन्होंने हशमत नामक चरित्र का सृजन कर के एक अद्भभुत प्रयोग का उदाहरण प्रस्तुत किया है। कृष्णा जी के भाषिक प्रयोग में भी विविधता मिलती है । उन्होंने हिंदी की कथा -भाषा को एक विलक्षण ताज़गी प्रदान की है । कृष्णा जी के भाषिक प्रयोग में भी विविधता मिलतीं है । उन्होंने हिंदी की कथा-भाषा को एक विलक्षण ताज़गी प्रदान की है। संस्कृतनिष्ठ तत्समता , उर्दू का बाँकपन और पंजाबी की जिंदादिली , ये सब उनकी रचनाओ में मौजूद है कृष्णा सोबती।
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